तरु मै विशाल

तरु मै विशाल

Tree.jpgतरु मै विशाल केवल देखने में नहीं हूँ

सिर्फ शीतल छाया नहीं देता
तोड़ने भी देता हूँ पत्ते फल और अपनी डाल
तुम मनुष्य खेलते भी हो चढ़ मुझपर
या कि मुझपर झूले डाल
मै पंछियों को घर और विषैले सर्प को तक
आश्रय दे देता हूँ
वर्षों वर्ष प्रकृति मुझपर कभी स्नेह की धूप
कभी अघाढ़ प्रेम के बादल
कभी प्रचंड गुस्से के तूफ़ान और सूखे को बरसाती है
कभी वसंत बनकर बेवजह ही
मुझपर असंख्य कलियाँ खिलाती है
मै खुद होकर भी खुदपर कोई अधिकार नहीं जता सकता
कभी कभी किसी की निर्मम कुल्हाड़ी
मुझको पूरा भी काट जाती है
कि मुझको दर्द नहीं होता यह अफवाह ही है बस
मेरे अन्दर अथाह सहनशीलता है
पृथ्वी की तरह सभी के लिए अपनापन है
सूर्य कि तरह सभी को मै एक ही दृष्टि से देखता हूँ
समर्पण की भावना से मैंने
प्रकृति के हाँथ खुद को सोँप दिया है
जब वो मुझे हवा के पलने झुलाती है
तब मै भी घडी दो घडी चार पल
सुख की नींद सोता हूँ
कहने को कभी न मरने वाला
कई सौ साल प्राचीन वृछ हूँ लेकिन
मेरा एक पत्ता भी मेरा नहीं है
तरु मै विशाल सिर्फ तेरा हूँ
तरु मै विशाल सिर्फ तेरा हूँ …

-गरिमा सिंह


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