आधार

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सुर्ख नशीली धुंध में आहटें समेट लेते थे

अब चमकीली धूप में राहें कम पढ़ जाएँ

मन भागे तो चार दिशाएं कम पढ़ जाएँ
कोई डूबे तो सात सत्ताहें कम पढ़ जाएँ

आसमान ज़मीन पर उतर आये, हाथ बढाये
तो उसकी बेपनाह पनाहें कम पढ़ जाएँ

कुछ वक़्त से आगे, थोडा समय से पीछे
भागें तो पैरों के छाले कम पढ़ जाएँ

कितने ख़याल हैं, जैसे किसी पिंजरे में कैद
सलाखें तोडें तो सांसें कम पढ़ जायें


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